गीता जयन्तीःकिंचित करणीय



                गीता जयन्तीःकिंचित करणीय

 मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते हैं । वस्तुतः मोक्षदायी है यह, क्योंकि ज्ञानोदधि का नवनीत इसी अवसर पर प्राप्त हुआ था । उसी उपलक्ष में इस तिथि को गीताजयन्ती मनायी जाती है । श्रीकृष्ण का दिव्य संदेश (आदेश,निर्देश,संकेत,सुझाव) सामान्य जन कल्याण हेतु, सखा अर्जुन के प्रतिनिधित्व में दिया गया । सदा उलझन और संशय-युक्त सहज मानव मन का प्रतीक है अर्जुन यानी अ-ऋजु , टेढ़ा-मेढ़ा । हालाकि ये टेढ़ा न रहे यदि तो शायद हमारी पहुँच भी सीधे तक न हो पावे । सीधे तक पहुँचने के लिए टेढ़े का सहारा- आलम्ब आवश्यक सा है ।

अर्जुन नहीं होता तो कृष्ण का यह दुर्लभ संदेश भी शायद हम तक नहीं पहुँच पाता । वेदों-उपनिषदों का सारतत्त्व – श्रीमद्भगवद्गीता से मानव मात्र वंचित रह जाता ।  गीतागङ्गोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते...। गीता की महत्ता और उपादेयता सर्वविदित है—गीता रुपी गंगाजल का पान कर लेने से पुनर्जन्म का कदापि भय नहीं रहता । सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः । पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ।। ऐसे दिव्य ग्वाले द्वारा दूहा गया दूध बड़े सौभाग्य से प्राप्त होता है, और जो इसका पान करने से वंचित रह जाते हैं, उन्हें हत्भाग्य ही कहना चाहिए ।

        जो लोग गीतामृत का नित्यपायी नहीं हैं, उन्हें भी प्रयास करना चाहिए कि कम से कम इस महत अवसर— गीताजयन्ती  पर तो गीतामृत पान अवश्य कर लें । सामान्य विधि विलकुल सरल है— गीता की पुस्तक को ही श्रीकृष्णमूर्तिस्वरुप मानकर यथा सम्भव पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करें और फिर पाठ प्रारम्भ करें । ११५ श्लोकों वाले सम्पूर्ण माहात्म्य,संकल्प,ध्यान,न्यासादि सहित अठारह अध्याय के पाठ में अभ्यस्त पाठक को सवा दो घंटे करीब लगते हैं । स्वाभाविक है - अनभ्यासी को अधिक लगेंगे।

सिर्फ हिन्दू संस्कृति में ही नहीं अन्य धर्मों-सम्प्रदायों में भी धर्मग्रन्थों के पाठ का विधान है। हमारे हिन्दू संस्कृति में विविध स्तोत्रों का अम्बार है, जिनमें गीता को सर्वश्रेष्ठ कहना अतिशयोक्ति न होगी । इसके पाठ की कई प्रचलित और कुछ गोपनीय विधियां हैं । श्रीमद्भगवद्गीता की तान्त्रिक साधना भी कही गयी है । कुछ खास मन्त्रों की, कुछ खास अध्यायों की । पाठ-पारायण की भी कई विधियां हैं- नित्य, नैमित्तिक, काम्यादि उद्देश्य से ।

श्रीकृष्ण की अनन्य भक्ति प्राप्ति हेतु दीर्घ काल तक बारहवें अध्याय का  पाठ करना चाहिए । मोक्षाकांक्षियों को पन्द्रहवें अध्याय की साधना करनी चाहिए ।


   इस बार १०दिसम्बर, शनिवार को गीताजयन्ती मनायी जायेगी । गया समयानुसार अपराह्न ३.२१ तक एकादशी तिथि का भोग काल है । अहोरात्र व्रती का तो व्रत आगामी सूर्योदय के पश्चात ही समाप्त होता है, किन्तु इस दिन किये जाने वाले अन्य नैमित्तिक कार्य पूजन-पाठादि कर्म तिथिभोग काल तक पूरा हो जाना चाहिए । वैसे उदयातिथि-मान-महत्ता-विचार से तो पूरा अहोरात्र ही मान्य है । अस्तु।

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