पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम् 4
(क) श्वेतार्क(मन्दार)मूल का विभिन्न प्रयोगः-
सर्वप्रथम मन्दार के पौधे का पता लगा लें।अब रविपुष्य/गुरुपुष्य योग में
उसके मूल को घर लाने की योजना बनायें।जिस दिन विहित योग मिल रहा हो,उसके पूर्व
संध्या को पूजन सामग्री- जल,अक्षत,मौली,रोली,सिन्दूर,चन्दन,सुपारी,पुष्प,कपूर,धूप,दीप,कुछ
नैवेद्य लेकर पौधे के समीप जाकर पूर्व/उत्तर मुख खड़े होकर विधिवत पूजन करें।(यहाँ
बैठ कर पूजा करना आवश्यक नहीं है)।ध्यातव्य है कि श्वेतार्क में साक्षात् गणपति का
वास है।अतः पूजन गणपति-मंत्र से ही होगा- चयन किए गये किसी गणपति मंत्र से- जिसकी
आप पहले भी साधना कर चुके हैं। पूजन के पश्चात् अक्षत-पुष्प-सुपारी लेकर(जल
नहीं)प्रार्थना करेः- "हे गणपति! हे श्वेतार्क देव! मैं अपने कार्य की सिद्धि
के लिए कल प्रातः आपको अपने साथ अपने घर ले चलूँगा।आप कृपापूर्वक मेरे साथ चल कर
मेरे अभीष्ट की सिद्धि करें।" प्रार्थना में शब्दों का हेर-फेर हो सकता
है,भावों का नहीं।वस्तुतः आप गणपति देव को अभीष्ट सिद्धि हेतु आमन्त्रित करने गये
हैं।प्रार्थना करके प्रेम पूर्वक हाथ में लिए हुए अक्षत-पुष्प-सुपारी को वहीं
वृक्ष-तल में छोड़कर वापस घर आ जायें।रात्रि में एकान्त शयन करें।स्वप्न संकेत-
शुभाशुभ मिल सकते हैं,नहीं भी।कोई बात नहीं।
अगली सुबह(मुंह अन्धेरे ही) नित्य कृत्य से निवृत्त होकर एक मीटर लाल या
पीले नवीन वस्त्र और खोदने-काटने के औजार के साथ पुनः वहाँ जाकर वृक्ष को सादर
प्रणाम करें,और गणपति के ध्यान सहित पूर्व चयनित मन्त्र का उच्चारण करते हुए पूर्व
या उत्तर मुख करके सावधानी पूर्वक जड़ की खुदाई करें।खुदाई काफी गहराई तक करनी
चाहिए। प्रयास करें कि पूरा का पूरा जड़ (मुशला सहित) निकल सके। पूरा कार्य मौन जप
के साथ सम्पन्न करना है।यूँ तो यह कार्य विलकुल अकेले का है,किन्तु विशेष
परिस्थिति में किसी सदव्यक्ति का सहयोग लिया जा सकता है,जो शुचिता और गोपनीयता में
आपका साथ दे सके।क्यों कि तान्त्रिक प्रयोग ढिंढोरा पीटकर करने की चीज नहीं
है।दूसरी बात यह कि प्रयास हो कि जड़ टूटने न पावे। जितना अच्छा जड़ होगा उतना ही
उपयोगी होगा।इस प्रकार ग्रहण किए गये टूटे-कटे जड़ का भी उपयोग है,और सम्पूर्ण
विग्रह का भी।अतः सबको सहेज लें- साथ ले गये नवीन वस्त्र में।ध्यान रहे- वहाँ से
वापस आते समय भी किसी से बातचित न करें।दिन चढ़ चुका रहेगा।रास्ते में लोग मिलेंगे
ही।पर आप मौन रहें।
घर आकर जड़ की विधिवत सफाई करें।पुनः,गंगाजल से सिंचित करने के बाद लाल
वस्त्र का आसन देकर छोटी चौकी वगैरह पर स्थायी तौर पर स्थापित कर विधिवत पंचो/षोडशोपचार
पूजन करने के बाद ग्यारह माला गणपति मन्त्र का जप करें।तत्पश्चात् दशांश
हवन,तत्दशांश तर्पण,तत्दशांश मार्जन करने के बाद एक ब्राह्मण और एक दरिद्रनारायण
भोजन एवं यथाशक्ति दक्षिणा प्रदान करें।इस प्रकार आपके घर में साक्षात् गणपति का
आविर्भाव हो गया।आगे नित्य यथोपचार पूजन एवं कम से कम एक माला मंत्र जप अवश्य करते
रहना चाहिए।
जड़ उखाड़ते समय कुछ टुकड़े(थोड़े मोटे से) यदि हों तो उनका भी विभिन्न तरह
से उपयोग हो सकता है।किसी शिल्पी से उन टकड़ों को उत्कीर्ण कराकर गणपति की छोटी सी
प्रतिमा(तीन-चार ईंच की) बनवा कर उसे भी उक्त विधि से स्थापित कर वही लाभ प्राप्त
कर सकते हैं।
श्वेतार्क गणपति स्थापन का फलः-
जो व्यक्ति इस प्रकार गणपति की नित्य साधना करता है उसके सभी मनोरथ पूरे
होते हैं।ज्ञान,विद्या,धन-सम्पत्ति,सुरक्षा,विघ्नशान्ति सब कुछ स्वयमेव होता रहता
है।उसके घर-परिवार पर किसी प्रकार के जादू-टोटके का प्रभाव नहीं पड़ता।भवन के
वास्तु दोषों का भी अद्भुत रुप से निवारण हो जाता है।
श्वेतार्क मूल के अन्यान्य प्रयोग( पूर्व विधि से प्राप्त)--
१.
स्वास्थ्य लाभः- जड़ को सुखाकर चूर्ण कर लें।आधा चम्मच चूर्ण नित्य
प्रातः-सायं गोदुग्ध के साथ लेने से बल-वीर्य,ओज-तेज की वृद्धि होती है।औषध सेवन
का प्रारम्भ रविपुष्य योग में ही करना चाहिए।
२.
सुरक्षा- तांबे के ताबीज में भर कर पुरुष दायीं बांह या गले में,तथा
स्त्री बायीं बांह या गले में धारण करें।इससे हर प्रकार के टोने-टोटके का निवारण
होकर पूर्ण सुरक्षा प्राप्त होगी।यह कार्य भी रविपुष्य योग में ही करें।
३.
सौभाग्य वृद्धि- क्रमांक दो की विधि से ही धारण करने पर यह लाभ भी
प्राप्त होता है,किन्तु इसमें एक कार्य
और करना पड़ता है- उसी तरह के ताबीज में कमल के पत्ते को डाल कर स्त्रियों को अपने
कमर में बांधना चाहिए।खास कर उन्हें जिनकी कुण्डली में सप्तम भाव(सौभाग्य स्थान)
दुर्बल हो।
४. वशीकरण-सम्मोहन –(क) श्वेतार्क मूल को रविपुष्य
योग में घी और गोरोचन के साथ घिस कर माथे पर तिलक लगाने से इस कार्य की सिद्धि
होती है।(ध्यान रखें- प्रयोग का दुरुपयोग न करें,अन्यथा आपकी इस सम्बन्धी अन्य
प्रयोग भी निस्फल हो जायेंगे।प्राणसंकट या ऐसी ही विशेष परिस्थिति में सिर्फ
प्रयोग करें।
(ख) बकरी के दूध में घिसकर भी उक्त लाभ प्राप्त
होता है।
(ग)विवाहार्थ(व्यभिचार नहीं) किसी स्त्री को
सम्मोहित करने के लिए अपने वीर्य के साथ घिस कर,तिलक लगा उसके चेहरे पर दृष्टि डालते
हुए थोड़ी बातचित करने मात्र से प्रबल सम्मोहन होता है।(ध्यान रहे- तिलक लगाकर
प्रथम दृष्टि उसी पर जाए,भूल से भी किसी दूसरे पर नहीं)।एक महोदय ने यह प्रयोग
करने का प्रयास किया था।संयोग वश ज्यूँ ही अपने कमरे से तिलक धारण कर गन्तव्य की
ओर बढ़े,अचानक एक अन्य स्त्री सामने आगयी,और लाख चेष्टा के वावजूद उसने सम्भाषण भी
किया।परिणामतः लम्बे समय तक वह उनका पीछा नहीं छोड़ी।बड़ी कठिनाई से पिंड छुड़ाना
पड़ा।अतः बहुत सावधानी से यह तामसी प्रयोग करें।सिद्धान्त है कि सत्व जब हठात् तम
में रुपान्तरित होता है तो उसकी ऊर्जा बड़ी प्रखर होती है।श्वेतार्क पूर्णतः
सात्विक प्रयोग है।अतः तामसिक प्रयोग से परहेज करना चाहिए।
५. स्तम्भन- यहाँ इस शब्द का व्यापक अर्थों में
प्रयोग है।यानी किसी प्रकार का स्तम्भन करने में समर्थ है यह मूल।
(क) श्वेतार्क मूल को लाल या पीले कपड़ें में
बाँध कर कमर में धारण कर सम्भोग करने से रति क्रिया काफी लम्बी हो जती है।इसे कमल
पत्र में लपेट कर बांधा जाय तो और शक्तिशाली हो जाता है।
(ख)श्वेतार्क का दूध और मधु मिलाकर लेप
बनायें।इस लेप में श्वेतार्क के फल से प्राप्त रुई की बत्ती बनाकर धी का दीपक जला
कर समीप रखें।सम्भोग काल में उसपर दृष्टि डाले रहने से वीर्य-स्तम्भन होता है।कोई
यह तर्क दे सकते हैं कि ध्यान दीपक पर रहने के कारण भोग-काल की वृद्धि
मनोवैज्ञानिक रुप से हो गयी।जी नहीं,हालाकि ऐसा भी होता है।किन्तु इस दीपक का अपना
विलक्षण प्रयोग है।
(६) राज-कृपादि – साधक को राजकृपा- राजकीय
पदाधिकारी की अनुकूलता,सम्मान आदि की आकांक्षा हो तो अपने निवास स्थान से पूर्व
दिशा की ओर स्थित श्वेतार्क-मूल ग्रहण कर ताबीज की तरह धारण करना चाहिए।
(७) रोगनाश,शत्रुपराजय,मानसिक कष्ट,शोक-सन्ताप
आदि के निवारण के लिए अपने निवास स्थान से दक्षिण दिशा की ओर स्थित श्वेतार्क-मूल
ग्रहण कर ताबीज बनाकर धारण करना चाहिए।
(८)विरोधियों
को नीचा दिखाने(दबाने),उनकी क्रिया-स्तम्भन हेतु अपने निवास स्थान से पश्चिम दिशा
में स्थित श्वेतार्क-मूल का प्रयोग करना चाहिए।
(९)
गृह-वास्तु रक्षा के उद्देश्य से विहित मुहूर्त में श्वेतार्क का पौधा कहीं से
लाकर ऐसी जगह पर स्थापित करे कि प्रवेश-द्वार के सीध में हो।गृह में प्रवेश करते
समय और बाहर निकलते समय श्रद्धा पूर्वक दर्शन करे।वैसे श्वेतार्क का पौधा भवन के
किसी भी भाग में होगा तो लाभदायक ही है,क्यों कि साक्षात् गणेश तुल्य है।किन्तु
प्रवेश-द्वार के सामने,पूरब दिशा में,ईशान कोण में,उत्तर दिशा में होना विशेष शुभ
माना गया है।श्वेतार्क तन्त्र में इस चमत्कारी वनस्पति के सैकड़ों प्रयोग मिलते
हैं।अपनी साधना-वुद्धि से यथोचित प्रयोग कर लाभान्वित हुआ जा सकता है।
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