संक्रान्तिविचार-

संक्रान्तिविचार-
पूरा ब्रह्माण्ड अनन्त प्रकाशवर्ष की गति से अनन्त दिशाओं में निरन्तर सरक रहा है। सभी ग्रह-नक्षत्रों की गति,स्थिति आदि में सूक्ष्म परिवर्तन भी तद्भांति ही निरंतर हो रहा है। हमारी पृथ्वी भी अपने क्रान्तिवृत्त का किंचित परिवर्तन कर रही है। अहर्गण के साथ अयनांश बदल रहा है। हर वर्ष ठीक एक ही समय पर संक्रान्ति नहीं हो सकती।
 नवग्रहों का द्वादश-राशि-पथ पर भ्रमण के क्रम में एक से दूसरी राशि पर संक्रमण (गमन)ही ज्योतिष-शास्त्र में संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। मेष,वृषादि राशियां बारह हैं,तो संक्रान्तियाँ भी बारह ही होंगी,और ग्रह नौ हैं, इसलिए x १२=१०८ संक्रान्तियाँ भी होंगी ही। इन सबका अपने आप में महत्त्व है; किन्तु नवग्रहों का मुखिया सूर्य हैं,और इनसे प्राणीमात्र का जीवन-चक्र सर्वाधिक प्रभावित है,इस कारण सूर्य की सभी संक्रान्तियों का विशेष ध्यान रखा जाता है। शुद्धमास,खरमास,मलमास,क्षयमास आदि सूर्य की ही संक्रान्तियों का प्रभाव है। सूर्य की बारह राशियों में भी विशेष कर दो- मेष और मकर राशि पर संक्रमण को हम संक्रान्ति-पर्व के रुप में मनाते हैं। यह स्थिति प्रत्येक वर्ष लगभग १४  अप्रैल और  १४ जनवरी को आ जाती है। ध्यान देने की बात है कि यहां मैंने लगभग शब्द का प्रयोग किया है- यानि बिलकुल निश्चित नहीं है कि अंग्रेजी तारीख १४ ही हो। वह उससे कुछ पहले और कुछ बाद भी हो सकती है,किन्तु लम्बें समय से हम इस १४ की लकड़ी पकड़े हुए हैं; और लोग समझने-जानने को राजी नहीं है,फिर मानना तो दूर की बात है। १४जनवरी आया और चूड़ा,दही,तिलकुट,खिचड़ी खा लिए हो गयी संक्रान्ति।जब कि बात ये है कि किसी जमाने में हम १३ तारीख को ही संक्रान्तिपर्व मना रहे थे,और आने वाले समय में १६,१७ता. भी हो जायेगा,यह निश्चित है।

फिलहाल यह परिवर्तन १५ ता. को ही हो रहा है। इस बार,यानि २०१६ में १५ जनवरी को प्रातः ७.२६(गया समयानुसार)सूर्य मकरराशि में आरहे हैं।अतः उस समय से लेकर सूर्यास्त पर्यन्त पुण्यकाल माना जायेगा। खरमास की समाप्ति हो जायेगी,और शुभकार्य प्रारम्भ हो जायेंगे। संक्रान्ति जनित स्नान,दान, तर्पण,श्राद्ध,भोजन आदि सभी कार्य १५ जनवरी को प्रातः ७.२६ के बाद ही करना उचित होगा। उसके पूर्व कदापि नहीं।


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धन्यवाद।

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