राम का जन्म::सॉफ्टवेयर का मापडण्ड

राम का जन्म::सॉफ्टवेयर का मापडण्ड

दैनिक भास्कर का एक रोचक खबर है—वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान ने अमेरिकी सॉफ्टवेयर की सहायता से एक शोध किया है,जिसमें दावा किया गया है कि श्रीराम का जन्म ५११४ ई.पू. १० जनवरी को दोपहर १२.०५ बजे हुआ। महाभारत का युद्ध ३१३९ ई.पू. १३ अक्टूबर को प्रारम्भ हुआ। कुछ और भी ऐसे ही दावे हैं,जिन पर केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय भी गम्भीर है।
     गम्भीर रहना भी चाहिए,क्यों कि ये सब गहन शोध का विषय है। किन्तु चिंता इस बात की है कि पाश्चात्य विकासवादी सिद्धान्तों के सहारे खोज करने निकलेंगे तो फिर अपनी कालगणना विधि को कहां रखेंगे? वह तो गलत प्रमाणित हो जायेगा न?
     भारतीय गणना पद्धति के अनुसार वर्तमान विक्रमसंवत् २०७२,यानी २०१५ ई.सन् में कलियुग ५११६ वर्ष व्यतीत हो रहा है,जो श्रीकृष्ण को पृथ्वी छोड़ने का भी वर्ष है। कलियुग से पूर्व द्वापर युग था, जिसकी अवधि ८ लाख ६४ हजार वर्ष कही गयी है,और इससे पूर्व था श्रीराम का त्रेता युग, जिसकी आयु १२ लाख ९६ हजार वर्ष बतलायी गयी है पुराणों में। ऐसी स्थिति में राम का जन्म अब से मात्र ५११४ ई.पू.+ २०१५ ई.सन्= ७१२९ वर्ष पूर्व कैसे मान्य हो सकता है- ज्वलन्त प्रश्न है।
     अब जरा आधुनिक शोध के मूल तर्क पर गौर करें- सॉफ्टवेयर में ग्रहस्थितियों की गणना सम्बन्धी सारे नियम भरे गये हैं। कुण्डली बनाने के लिए हम वर्तमान तारीख,महीना,वर्ष के साथ स्थान और समय को ‘इनपुट’ करते हैं,जिसके आधार पर पूरी ग्रहस्थिति सूक्ष्मातिसूक्ष्म रुप से परिणाम के रुप में प्राप्त होता है। अब, हम इस क्रिया के विपरीत पक्ष को देखें- तारीख इत्यादि बताने से सॉफ्टवेयर तात्कालिक ग्रहस्थिति दिखा सकता है,तो ग्रहस्थिति इनपुट करने से तारीख और समय बतला देना भी बिलकुल सम्भव है। और इसी सिद्धान्त से शोधकर्ताओं ने प्रमाणित किया है- यहां तक की बात स्वीकारने में कोई आपत्ति नहीं हो रही है- जैसा कि संस्थान के निदेशक ने बताया कि ऋग्वेद,रामायण,महाभारत आदि से प्राप्त ग्रहस्थिति को दर्शाकर सॉफ्टवेयर-मैपिंग की गयी। किन्तु गौर करने की बात है कि चूक भी सम्भवतः यहीं हो रही है।
     इस गणितीय चूक पर ध्यान दिलाने के लिए, एक गणितज्ञ की रोचक आपबीती सुनाना अप्रासंगिक नहीं होगा। गणितज्ञ महोदय अपने तीन बच्चों और पत्नी के साथ कहीं जा रहे थे।रास्ते में एक नदी पार करनी थी। किसी से पूछ कर उन्होंने जानकारी ली कि नदी में पानी कितना है। पता चला कि किनारे पर दो फीट, थोड़ा आगे जाने पर तीन फीट,उसके बाद पांच फीट,उसके बाद फिर दो फीट।गणितज्ञ ने हिसाब लगाया-मेरी लम्बाई छःफीट,पत्नी पांच फीट,बड़ा बेटा चार फीट,मंझला तीन फीट,छोटा दो फीट।यानी ६+५+४+३+२=२० का औसत ५ फीट,तथा नदी की गहराई २+३+५+२=१२ का औसत ३ फीट। यानी कि औसत लम्बाई से औसत गहराई कम है। गणितज्ञ महोदय उतर गये नदी में, और यहां भी अपने गणितीय वुद्धि का ही प्रयोग किये- सबसे आगे खुद,उसके बाद पत्नी,तथा क्रमशः तीनों बच्चे। नदी के उस पार पहुँचे तो देखा कि तीनों बच्चे गायब हैं। पत्नी ने शोर मचाया- मेरे बच्चे डूब गये,उन्हें ढूढ़ो जल्दी। पति ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है,मेरा गणित बिलकुल ठीक है। तुम बेचैन हो तो ढूढो,तब तक मैं जरा नदी के उस पार जाकर बालू पर जो हिसाब किया था,उसे जांच लेता हूं,कहीं कोई गलती तो नहीं होगयी,क्यों कि सिद्धान्त बिलकुल सही प्रयोग किया है हमने।
     सॉफ्टवेयर ने भी बिलकुल सही सिद्धान्त अपनाया है,किन्तु उसके प्रयोग कर्ता को कुछ और भी बातें ज्ञात होनी चाहिए,जैसा कि गणितज्ञ ने सिद्धान्त तो सही प्रयोग किया,किन्तु भयंकर व्यवहारिक-त्रुटि हो गयी। इसे समझने के लिए भारतीय ज्योतिष की कुछ मूल बातों पर गौर करना होगा-
     पितामह,वसिष्ठ,रोमक,पौलिश और सूर्य- ये पांच गणित-सिद्धान्त-ग्रन्थ हैं,जिसमें काल की लधुत्तम इकाई से लेकर,प्रलयान्त,और प्रलयान्तर तक की गणना की गयी है। ग्रहों की मार्गी-वक्री,शीघ्र-मन्द,नीच-उच्च,दक्षिण-उत्तर आदि सभी गतियों की चर्चा है।इसके विशद ज्ञान के लिए पंचसिद्धान्तिका,सिद्धान्तशिरोमणि,आर्यभट्टीयम्, चापीयत्रिकोणगणितम्, लीलावती आदि ग्रन्थों का अवलोकल करना चाहिए,न कि सिर्फ वैदिक और उसके बाद के साहित्यिक ग्रन्थों- रामायणम्,महाभारतम् आदि की कथाओं से निर्णय ले लेना उचित है। पौराणिक कथाओं पर भी गौर करें यदि, तो पायेंगे कि मानवी गणना(सेकेन्ड,मिनट,घंटा,दिन,मास,वर्ष आदि) के हिसाब से ४ अरब ३२ करोड़ वर्षों का एक कल्प होता है,जिसमें चौदह मन्वन्तर,और प्रत्येक मन्वन्तरों में सवाएकहत्तर चौयुगिया से कुछ अधिक (७१.४२८५७१४...) वर्ष होता है। इसे ही ब्रह्मा का दिन कहा जाता है,और फिर इतनी ही लम्बी रात्रि भी होती है। दिन की समाप्ति के साथ ही उस ब्रह्मा की पूरी सृष्टि समाप्त हो जाती है। ध्यातव्य है कि एक समय में ऐसे अनेकानेक ब्रह्मा होते है,यानी कि समानान्तर रुप से अनेकनेक ब्रह्माण्ड भी – इसे आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार कर चुका है।
     अब इस गणना की स्पष्टी के बाद दूसरे पक्ष की बात करते हैं- वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है कि पूरा ब्रह्माण्ड अनेक प्रकाशवर्ष की गति से निरन्तर गतिशील है। इस गति के कारण अन्तरिक्ष में भ्रमण कर रहे सभी ग्रहपिंडों की मूल स्थिति में भी निरन्तर परिवर्तन आते जा रहा है,भले ही वह लक्षित होता है काफी समय बाद। एक अनुमानिक आधार पर करीब 22000वर्षों के बाद ग्रहों की आकाशीय स्थिति वह नहीं रह जाती,जो पहले होती है,यानी जो ध्रुवतारा आज हम देख रहे हैं,जिसकी परिक्रमा सारे ग्रह-नक्षत्र करते हैं,आने वाले समय में उसके स्थान पर कोई और तारा आ बैठेगा। ऐसा अब तक अनेक बार हो चुका,और आगे भी होता ही रहेगा।क्यों कि सौरमंडल के सभी ग्रहों के परिक्रमा क्रम में बनने वाले सम्पातविन्दु(कटान) में परिवर्तन हो जा रहा है।
     तीसरी बात- सबसे अहम तथ्य ये है कि सृष्टि में सब कुछ चक्रीय है- परिपथीय है। इस आधुनिक शोध ने जो यह प्रमाणित किया कि ५११४ ई.पू. ग्रहस्थितियां वैसी ही थी,जैसी कि रामजन्म के समय के लिए प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित है। यहां चूक इसी बात की हो रही है कि चक्रीय स्थिति में ‘इस’ चक्र की संख्या क्या है? क्यों कि किसी घूर्णनशील चक्र में एक जैसी स्थिति तो अनेक बार आयेगीं न? सम्पात विन्दु के परिवर्तन का समय यदि 22000 हजार वर्ष ही हम मान लें,तो भी जाहिर है कि प्रत्येक उन-उन वर्षों में ग्रहस्थितियां वैसी ही मिलेंगी।

     किन्तु इस सूक्ष्म बात की ओर ध्यान ही नहीं जा रहा है,क्यों कि हम सोचे,बैठे हैं कि समग्रकाल खण्ड मुश्किल से दस से बीस हजार बर्षो का ही है,यही कारण है कि  सर्व प्राचीन ग्रन्थ वेद की रचना काल को भी इसी कालावधि में जकड़ दे रहे हैं।अतः इस शोध या इस तरह के अन्याय शोधों के विषय में भारतीय कालगणना को समझना और फिर उस दृष्टिकोण के साथ-साथ आधुनिक सिद्धान्तों-नियमों का समानान्तर प्रयोग भी करना होगा। तभी परिणाम सही मिल पायेगा। इसके लिए ऐसा सॉफ्टवेयर डेवलप करने की आवश्यकता है,जो घूर्णन की गति और मात्रा दोनों का एकत्र या अलग-अलग मापन कर सके। साथ ही विज्ञान की अन्य विधियों का भी उपयोग करना होगा,जैसे कि एन्थ्रोपोलॉजिकल प्रयोग से कार्बनिक अध्ययन करके लाखों करोड़ों वर्षों पीछे का सही आंकलन कर लेते हैं। पुरात्वाविक परीक्षण से भी वही कालखंड पुष्ट हो जाये,तभी बात पूर्ण रुप से मान्य और सत्य के करीब हो सकेगी। अस्तु।

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