“पेटेन्ट” का “पेसेन्ट”

पेटेन्ट कापेसेन्ट

मैं कोई विधि-विशेषज्ञ नहीं हूँ। पेटेन्ट कानून का कुछ अता-पता भी नहीं है। किन्तु ‘कॉमनसेंस’ का थोड़ा सा हिस्सा मेरे हिस्से में भी आ गया है। वैसे सोचता हूँ कि जल्दी ही इसका पेटेन्ट करा लूँ। क्यों कि हो सकता है बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नजर में ये कॉमनसेन्स भी चढ़ जाये,और इसका भी वे पेटेन्ट करा लें,ताकि किसी को कॉमनसेन्स इस्तेमाल करने के लिए उनसे परमीशन लेना जरुरी हो जाय। कुछ साल पहले सुना था कि हल्दी,आवलां,बबूल,नीम,बेल जैसे सैकड़ों चीजों का पेटेन्टीकरण हो रहा था,और हम सब सोये हुए थे चरक-सुश्रुत-वाग्भट्ट का तकिया बनाकर। आज सुबह-सुबह ‘दैनिक भास्कर’ ने खबर दी कि कोई 1500 योगासनों का पेटेंट बचाने के प्रयास में है भारत,और औद्योगिक अनुसन्धान परिषद डिजिटल लाइब्रेरी बनाने की तैयारी कर रही है। मुझे तो लगता है कि इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को और कुछ काम-धाम नहीं मिल रहा है। उनके लिए मेरा एक मूल्यवान सजेसन है कि गंगा और हिमालय का भी पेटेन्ट करा ही लें। वैसे मैं एल्पाइ कर चुका हूँ – चांद,सूरज,मंगल से लेकर प्लूटो तक के पेटेन्ट के लिए। किन्तु खेद की बात है कि बड़ा बाबू,जिनके टेबल पर मेरी फाइल पड़ी है, ‘लौंग लीभ इन ड्यूटी’ पर  हैं- यमराज और चित्रगुप्त का पेटेन्ट रिपोर्ट जांच करने गये हैं। उधर से लौटते ही मैं कुछ पूजा-दक्षिणा देकर,अपना काम जरुर करवाऊँगा,और फिर इन सिर-फिरे बहुराष्ट्रियों से पूछूंगा कि अब क्या करोगे? 
नोट फॉर नोट - इसमें आपका भी कोई सुझाव हो पेटेन्ट-लिस्ट-एक्टेन्शन का तो बता देंगे। तब तक मैं इन्तजार में हूँ। दरअसल मैं पेटेन्ट का पेसेन्ट हूँ। धन्यवाद।
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