कालसर्पदोष
श्रावण
शुक्ल पंचमी को नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार बुधवार,१९ अगस्त को ये
अवसर मिल रहा है। जन्म कुण्डली में कालसर्प दोष की स्थिति जानकर प्रायः लोग
चिन्तित हो उठते हैं। उपाय के लिए यहां-वहां भटकते फिरते हैं। यह योग जरा पेचीदा
है। पेचीदा इस मायने में कि उपाय करने के बाद भी पूर्ण रुपसे शान्त नहीं होता।
इसका दूसरा सकारात्मक पक्ष ये भी है कि बहुत से व्यक्ति इस योग के कारण ही जीवन
में तरक्की करते देखे गये हैं। इस सम्बन्ध में एक वृहत् पुस्तक लिखने की योजना है
मेरी,जो वर्तमान ‘उपद्रवीनाथ के चिट्ठे’ के बाद का क्रम है।अभी तो आप मेरे इस
विचित्र उपन्यास का आनन्द उठा ही रहे हैं।
राहु
और केतु के संयोग से कुण्डली में कालसर्पयोग की स्थिति बनती है।इनके ही अधिदेवताओं-
काल और सर्प को संयुक्त करके इस योग का नामकरण हुआ है।मुख्य रुप से राहु-केतु की
आराधना,तथा इनके अधिदेवों की आराधना से ही शान्ति लाभ होता है। साथ ही महाकाल की
आराधना का भी विशेष महत्त्व है। राहु-केतु के मध्य महाकाल को स्थापित कर दें- मान्त्रिक,तान्त्रिक,या
कि यान्त्रिक स्वरुप में- यही संक्षिप्त विधान है साधना का। नागपंचमी से
कृष्णाष्टमी पर्यन्त उन्नीस दिनों का अनुष्ठान है यह।
जो
व्यक्ति कूँआ खोदने का सामर्थ्य नहीं रखते,उन्हें तो किसी से लेकर घड़े में जल रखना
ही होगा न ! यही कारण है कि यन्त्र की परम्परा भी चल पड़ी
इसके निवारण हेतु। यन्त्र दो तरह के होते हैं- धारण और पूजन योग्य। पूजन-यन्त्र को
अधिक महत्वपूर्ण माना गया है।
वर्षों पूर्व,
विन्ध्यगिरि की पहाड़ियों में भटकने के क्रम में एक महापुरुष द्वारा इसकी
साधना-विधि का प्रसाद प्राप्त हुआ था। तब से प्रतिवर्ष अति सीमित संख्या में यन्त्रों
का निर्माण करता हूँ। जिन्हें आवश्यकता हो सम्पर्क कर सकते हैं।धन्यवाद।मों.08986286163
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें