स्वतन्त्रता दिवस 2015 पर विशेषःःकटे हाथ का दर्द

कटे हाथ का दर्द
काफी पहले रेडियो पर एक नाटक सुना था- कटे हाथ का दर्द। नाटककार तो स्मरण में नहीं हैं,किन्तु उनकी व्यथा अविस्मरणीय है। कथ्य है कि डॉक्टर ने विवश होकर,एक व्यक्ति का हाथ काट दिया,क्यों कि दूसरा विकल्प नहीं था,उसके जीवन को बचा पाने का। किन्तु दुर्भाग्य यह कि वह अभागा बारबार आकर डॉक्टर से अपने दर्द की शिकायत करता कि दर्द अभी भी बना हुआ है। डॉक्टर के लिए यह समझना,और समझाना मुश्किल हो रहा था कि जिस हाथ को ही काट डाला गया- वर्षों पूर्व अब भी उसमें दर्द कैसे-क्यों हो सकता है !
चुंकि हमारे साथ भी यह घटना अब से अड़सठ साल पहले घट चुकी है,इसलिए दावे के साथ कह सकता हूँ कि दर्द हो रहा है। होता रहेगा भी,क्यों कि उस हाथ को पुनः यथास्थान ला-जोडना नामुमकिन सा है।
आज चौदह अगस्त है। आज जैसी ही एक रात को यह दुःखद घटना घटी थी।और अहले सुबह सबने जश्न भी मनाया था- ऑपरेशन सफल होने का। इतना ही नहीं, ऑपरेशन की सालगिरह भी मनाते हैं सभी। क्या ऑपरेशन भी कहीं सालगिरह मनाने की चीज है? वो भी ऐसा,जिसका मवाद अभी तक सूखने के वजाय बजबजा ही रहा है !
दो स्वार्थी बेटों की चाह पूरी करने के लिए शायद एक विवश बाप ने ऐसा किया था। क्या उसकी विवशता सही थी,दूसरा कोई विकल्प था ही नहीं? प्रश्न अनुत्तरित है, आज भी। इसलिए कि सही उत्तर देने वाले को पहले ही रास्ते से हटा दिया उसके भाईयों ने या कि उसके शत्रुओं ने। ऐसे में दर्द तो होगा ही न ?

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