ध्वजस्थापन
ध्वजस्थापन
ध्वज(ध्वजा)स्थापन
वास्तुविषय के अन्तर्गत ही आता है।भवन का निर्माण सम्पन्न हो जाने पर,गृहप्रवेश का
विधान है।प्रवेश सम्बन्धी अन्यान्य कर्मकाण्ड पूरे हो जाने के बाद कुलदेवता-स्थापन
किया जाता है,और तत्पश्चात् ध्वजास्थापन।
ध्वजा
सुख-समृद्धि-शान्ति-सुरक्षा का प्रतीक है।प्रत्येक राष्ट्र का एक सम्माननीय ध्वज
हुआ करता है।विभिन्न संस्थाओं,आश्रमों,टोलियों का भी ध्वज हुआ करता है,जिसकी रक्षा
और मर्यादा का सदा ध्यान रखा जाता है।
गृहस्थ-गृह
में ध्वजास्थापन वायुकोण(पश्चिमोत्तर)पर किया जाना चाहिए। ध्वजा सुन्दर,सूती/रेशमी वस्त्र का होना चाहिए,जिसके
रंगों और ततस्थ आकृतियों का चयन उद्देश्य,परम्परा और रीति पर निर्भर है।आमतौर पर
भवन में हनुमद्ध्वजस्थापन का चलन है,जिसका नवीनीकरण प्रायः प्रत्येक वर्ष चैत्र
शुक्ल नवमी(रामनवमी)को किया जाता है।श्रुति वचन हैः- कुजवारे नवम्यां वा
अन्यस्यां शुभदातिथौ।श्रद्धया चोत्तरे काले ध्वजादानादिनी शुभम्।।(मंगलवार,वासंतिक
नवमी,वसंत पंचमी,कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी,आदि शुभ तिथि-वारों में ध्वजस्थापन करना
चाहिए) इसका आधार-स्तम्भ हरे-ताजे बांस का
ही होना चाहिए,जो सीधा,सुडौल और परिपक्व हो,सड़ा-गला न हो,और दस हाथ से अधिक
लम्बाई वाला हो। यथा-सरलच्छिद्ररहितो निर्वर्णो मूलसंयुतः।दशहस्ताधिको ग्राह्यो
वांसस्तु ध्वजहेतवे।। ध्वजस्थापन की मजबूती का भी ध्यान रखना चाहिए,क्यों कि
आंधी-पानी आदि में(भी)ध्वजा का गिरजाना,टूटजाना गृहस्वामी के अनिष्ट का संकेत
है।ऐसा होने पर विघ्नशान्ति (ध्वजभग्नशान्ति) का विधान है।
पंचोपचार पूजन करके पुराने ध्वज का विसर्जन
कर,नये ध्वज की स्थापना करनी चाहिए।इसके लिए योग्य कर्मकांडी ब्राह्मण का सहयोग
अपेक्षित है।सर्वप्रथम किसी उपकरण से भूमि को खनित कर प्रसस्त करें।तत्पश्चात् भूमि
का पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करें।
अब,ध्वजस्तम्भ(वांस) को रोली,सिन्दूर,घृत आदि से
लेपित कर;उसमें ध्वज को लगावें,और विधिवत पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करें।पूजन के
पश्चात् अन्य सहयोगियों(घर के सदस्य)के सहारे ध्वज को पूजित-गर्त में स्थापित कर,पुनः
पंचोपचार पूजन करें,और अन्त में प्रार्थना करेः- देवासुराणां सर्वेषां मङ्गलोऽयं
महाध्वजः।गृह्यतां सुखहेतोर्भे ध्वजः श्रीपवनात्मज।। अस्तु।
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