चमत्कार को नमस्कार
चमत्कार को नमस्कार
चमत्कार को नमस्कार करने की हमारी पुरानी आदत
है।पिछले कुछ
महीनों
से एक तथाकथित संत मीडिया और प्रशासन को दौड़ा रहा है।अब इधर दो दिनों से एक और
संत के सपने के पीछे दौड़ जारी हो गया है। मीडिया को तो टीआरपी से मतलब है,एएसआई
भी दीवानी है।रिजर्व बैंक के मुंह से भी लार टपक रहें हैं।उधर घोटालेबाजों की तो
चाँदी अलग।रही आम जनता की बात- तो कौन कहें कि ‘मोतीडूँगरी’ के अरबों के खजाने से जनता
और देश का भला हो गया? उस समय भी लगा था कि अब क्या, देश की गरीबी और तंगहाली तो
हिन्दमहासागर में डूब मरेगी,हमारा भारत फिर से सोने की चिड़िया वाला हो जायेगा।पर
हुआ जोकुछ- जग जाहिर है। जयपुर, मानसिंह का तिलिस्म टूटा,और पूरा खजाना एक नये
तिलिस्म- स्विटजरलैंड तिलिस्म में तबदील हो गया।आम आदमी सिर्फ समाचारों का जायका लेता
रह गया।
कथन का अभिप्राय यह है कि संत और सपने सर्वथा
निरर्थक नहीं हैं। हमारा तन्त्र-ज्योतिष-वास्तुशास्त्र,और अन्यान्य शास्त्र कोरी
कल्पना-प्रसूत नहीं हैं,प्रत्युत सार्थकता है। इनमें दम है।इनमें निष्काम भाव
से,निष्कपट भाव से डूबने की जरुरत है।
तन्त्र-ज्योतिष-वास्तुशास्त्र
को आधुनिक तकनीक,और विज्ञान के आलोक में खंगालने की जरुरत है।किन्तु हम दो खेमों
में बंटे हैं- एक सर्वथा नकारात्मक सोच(कोरी कल्पना और झूठ कहने) वाला,तो दूसरा
अंधी दौड़ में शामिल होने वाला।और इन दोनों के मध्य- निष्पक्ष चिन्तन,मनन,खोज वाला
नदारथ है।
मेरी पूरी आस्था है- उक्त शास्त्रों में।पिछले
लम्बे समय से इन्हें खंगालने
सहेजने
में लगा हूँ। ‘अहिबल,धरा,दकार्गल’ आदि ऐसे सूत्र हैं,जिनके सहारे भूगर्भ की यात्रा
हो सकती है। ‘दफीनों’ तक पहुँचा जा सकता है।कई प्रयोग मैंने करके आजमाया।५० से ७५%
तक सिद्धान्त की सफलता भी मिली, किन्तु दैववश मंजिल से काफी पहले ही ठहर जाना
पड़ा।अब से कोई ४० वर्ष पूर्व एक संत-सानिध्य हुआ।निष्कासन ही नहीं सीधे निर्माण
तक का सैद्धान्तिक सूत्र-प्रसाद प्राप्त हुआ।और तय था कि अगले चतुर्मास्य में व्यावहारिक
सूत्र भी ग्रहण होजाना है,किन्तु इसे सौभाग्य कहूँ या दुर्भाग्य-
संतश्री
के जीवन का अगला चतुर्मास्य आया ही नहीं।मुझे व्यावहारिक सूत्र
पकड़ाये
वगैर ही मृत्युलोक से तिरोहित हो गये,और मुझपर पहाड़ टूट पड़ा।
अब
तो बस, टूटे पहाड़ के मलवे को हटाने में लगा हूँ।
बस आज इतना ही।आगे फिर कभी।
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