पदार्पण

आदरणीय बन्धुओं ,
सप्रेम नमस्कार।
एक पुरानी उक्ति है कि मनुष्य सामाजिक प्राणी है।सच में सामाजिक है,किन्तु मुझे लगता है कि यह विचित्र सा प्राणी बहुत तेजी से असामाजिक होता जा रहा है।इसका बहुत बड़ा हिस्सा असमाजिक हो चुका है।शेष भी होने को बेताब है।
कुछ ऐसे ही विषयों पर आये दिन अकुलाहट होती है।वैसे यह कार्य अकर्मण्यता का सबूत है।जो कुछ करता है,वह तो करने में व्यस्त रहता है।उसे अकुलाने की फुरसत कहाँ है।अकर्मण्य बैठे-बैठे,सोये-सोये बस सिर्फ अकुलाते रहता है।सुबह-सुबह(वैसे उसकी सुबह जब भी हो) चाय और अखवार एक साथ चाहिए।दोनों में जरा भी देरी हुयी तो अकुलाहट शुरु हो जाती है।और मिल भी गया तो भी अकुलाहट।
ये अखबार,टीवी,रेडियो सब अकुलाहट के परम मित्र हैं।और आजकल का नवोदित - इन्टरनेट तो अकुलाहट की दुनियाँ का बेताज बादशाह है।
कुछ ऐसे ही अकुलाहट के क्षणों को सहेजने या परोसने के लिए मैंने नये ब्लॉग का दामन थामा है।
यहाँ कब,क्या मिलेगा आपको मुझे खुद ही पता नहीं।अब पता कैसे हो- कब किस बात को लेकर अकुलाहट होगी।
जोभी हो रुप इसका जाति हमेशा एक ही होगी---अकुलाहट।
पता नहीं- जातिप्रमाणपत्र  बीडीओ साहब बना देंगे या कुछ पूजा-दक्षिणा मांगेंगे।
तो आज इतना ही।
धन्यवाद।फिर मिलेंगे,कब कैसे कहूँ।

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