राशिफलविचारःःकितना सार्थक,कितना निरर्थक
राशि फल
राशिफल विचार पहले परम्परा थी,किन्तु अब फैशन का रुप ले
लिया है।मेष संक्रान्ति(१४ अप्रैल) को लोग विशुआन मनाते थे- नवान्न(रब्बी-फसल)तैयार
हो जाता है उस समय तक।जौ-चना के सत्तू,गूड़,घी,अमौरी के साथ नया पंचाग भी दान करने
की परम्परा थी।ब्राह्मण को अपने घर बुला कर, या उनके घर जाकर उक्त वस्तुयें अर्पित
की जाती थी,और प्रतिफल में आगामी सम्बत् का राशिफल पूछा जाता था;किन्तु अब तो
राशिफल बतलाने के लिए नित्य प्रातः मैडबॉक्स पर तरह-तरह के बाबा बैठे हुए हैं(जाति
न पूछें साधु की,पूछ लीजिए ज्ञान- को चरितार्थ करते हुए)।अतः उनका ब्राह्मण होना
कोई जरुरी नहीं है।ज्योतिष-महारथी होना भी जरुरी नहीं है। जरुरी है, सिर्फ बेधड़क
लच्छेदार बोली की- भाषा की भी नहीं।जिन्हें लग्नेश और लग्नस्थ शब्द का अन्तर भी
पता नहीं है,वे भी महिमामंडित हैं चैनेलों पर। जिज्ञासा भाव से कभी टी.वी.खोलने का
साहस किया यदि, तो दो-चार को सुन कर सिर-दर्द होने लगता है। शुरु में तो लगा कि यह
उच्चारण उनका ‘स्लिप-ऑफ-टंग’ है;किन्तु वस्तुतः ‘लैक-ऑफ-नॉलेज’ कहना अधिक उपयुक्त
होगा।खैर,किसी मंडलेश्वर की आलोचना मेरा अभीष्ट नहीं है।मैं तो सिर्फ आंखे खोलने
के लिए कहना चाहता हूँ- श्रद्धा बड़ी अच्छी बात है;किन्तु अन्धश्रद्धा (ब्लायन्ड
ल्वायल्टी) बड़ी घातक हो सकती है।अस्तु।
गत तीन सम्वतों से
फेशवुक एवं ब्लॉग पर राशिफल डालते आ रहा हूँ।इस क्रम में काफी लोगों ने सीधे
सम्पर्क भी साधा,और मुझे उत्साहित किया।कुछ लोगों ने सुझाव भी दिए। विशेष
जिज्ञासुओं को सीधे टेलीफोनिक संवाद करने का आग्रह रहता है मेरी ओर से, क्यों कि
फेशबुक चैटिंग मुझे भाता नहीं,किसी बन्धु के चैट शुरु कर देने पर मैं सिर्फ
निर्वाह भर कर लेता हूँ।आशा है, आगे भी आपका स्नेह निरंतर मिलता रहेगा।
आमतौर पर सीधे अपनी
राशि जानकर फल देख लेने की परम्परा है;किन्तु इस सम्बन्ध में मैंने पिछली बार भी
कहा था,पुनः स्मरण दिला रहा हूँ— फल-विचार सिर्फ राशि से न करके, लग्न से भी
करें।जैसे- मेरी राशि कुम्भ है और लग्न सिंह। सटीक फल विचार के लिए राशिफल-विवरण
में दिए गये दोनों फलों का विचार करके निश्चय करना चाहिए।मान लिया कुम्भ राशि का
फल उत्तम है,किन्तु सिंह लग्न का फल प्रतिकूल है।ऐसी स्थिति में निश्चयात्मक
परिणाम मध्यम होगा।
दूसरी बात ध्यान देने
योग्य यह है कि आपके नाम का प्रभाव भी सामान्य जीवन में काफी हद तक पड़ता है।हमारे
यहां विधिवत नामकरण-संस्कार की परम्परा थी।नाम सार्थक हुआ करते थे,उनका निहितार्थ
हुआ करता था;किन्तु अब तो इंगलैंड के कुत्ते-विल्लयों का नाम हम अपने बेटे-बेटियों
का रखकर गौरवान्वित होते हैं।नियमतः नाम के प्रथमाक्षर की राशि के फल का भी विचार
कर लेना चाहिए।इस प्रकार त्रिकोणीय दृष्टि से राशिफल-विचार करना उचित है।
एक और,सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण तथ्य,जिसे लोग प्रायः नजरअंदाज कर देते हैं— व्योम-मण्डल में सत्ताइस
नक्षत्र और बारह राशियों के परिक्रमा-पथ पर विचरण करते हुए सूर्यादि नवग्रह(ध्यातव्य
है कि अरुण, वरुण, यम को प्राचीन भारतीय ज्योतिष में स्थान नहीं है) भूमण्डलीय
समस्त पद-पदार्थों को प्रभावित(नियन्त्रित)कर रहे हैं। विश्व की आबादी सात अरब से
भी अधिक की है।इन्हें मात्र बारह भागों में विभाजित करके किसी ठोस फलविचार/निर्णय
पर पहुँचना कितना बचकाना(नादानी)हो सकता है? सिर्फ राशि वा लग्न के आधार पर मनुष्य
मात्र को बांट देना क्या सही और समुचित नियम हो सकता है? आपका उत्तर भी ‘कादापि
नहीं’ ही होगा।आर्थिक,सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक,शारीरिक,मानसिक आदि कई मापदण्ड
होंगे इन्हें प्रभावित करने हेतु।इसके साथ ही अलग-अलग व्यक्तियों के जन्मकालिक ग्रहों
की स्थिति,तथा वर्तमान(गोचर)स्थिति आदि कई बातों पर किसी व्यक्ति का वर्तमान और
भविष्य आधृत होता है।राशि तो मात्र जन्मकालिक चन्द्रमा की स्थिति को ईँगित करता
है,और लग्न जन्मकालिक कक्षों (भावों)की सांख्यिकी मात्र है।अतः फलविचार कितना
सार्थक-कितना निरर्थक हो सकता है,आप स्वयं समझ सकते हैं। पुनः यह कहना आवश्यक नहीं
रह जाता कि राशिफल के आधार पर अपने जीवन को आशा-निराशा,प्रसन्नता-अप्रसन्नता के झूले
में हिचकोले खाने से बचावें,और अपना तात्कालिक कर्म यथोचित रीति से करने का प्रयास
करें।अस्तु।
सुविधा के लिए ‘अबकहा
चक्र-सारणी’ भी राशिफल के साथ प्रस्तुत है।इससे उन लोगों को भी लाभ होगा, जिन्हें
अपनी राशि और जन्म-समय आदि की सही जानकारी नहीं है।
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