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झूठ की भीड़ में झूठ की तलाश

       (लम्बे समय से इस ब्लॉग पर कुछ पोस्ट नहीं कर रहा था। कार्यव्यस्तता में ध्यान भी नहीं रहा। पुनः प्रयास करता हूँ यहाँ भी पोस्ट करने का। )                                             झूठ की भीड़ में झूठ की तलाश                            सोढ़नदासजी भी गज़ब के जीवट इन्सान हैं। हमेशा कुछ न कुछ नया करने-खोजने के धुन में रहते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें कुछ भी सुनना-सहना-झेलना पड़े। खबर है कि फिलहाल वे सबसे बड़े झूठ की तलाश में हैं। किन्तु उलझन ये है कि झूठ की तलाश की शुरुआत कहाँ से करें— अद्वैत वेदान्त के सिद्धान्त  ‘ ब्रह्म सत्यम् जगत् मिथ्या ’   वाली बात से या कहीं और से।    दिक्कत ये भी है कि वेदान्त-उपनिषद् तो सीमित हैं, जबकि  ‘ कहीं और ’   वाला दायरा असीमित । साहित्य में कल्पना की उड़ान इतनी...

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